हम में आज भी कहीं एक बच्चा बसता है
वोह हकीकत से बेफिक्रे है
अजब अजब उसके नखरे हैं
दिन भर की दौड़ धूप के बाद
छल कपट और झूठ के बाद
मेरा अंतर्मन आज भी सच्चा है
हम में आज भी कहीं एक बच्चा बसता है
भीड़ में छुपा हुआ सहमा हुआ डरा सा
अकेले में शान्त सही तेजस्वी आलोक सा
आज उसे खिलोनों और चाँद तारों की ख्वाइश नहीं शायद
लेकिन दादी नानी के किस्सों और माँ की गोद की हसरत रखता है
भाई बहिन के दुलार के सपनों में खोया
हम में आज भी कहीं एक बच्चा बसता है
इसकी चंचलता का कोई सानी नहीं
कीमती कपड़ों,लम्बी गाडी और महंगे बंगलों के बीच
आँखों की कोर से,चुपके से पुरानी गली में दोस्तों को ढूँढता है
ज़िद्द पे अड़ जाये तो अब भी आफत है
पर पिता की डांट की गुंजाईश ज़रूर रखता है
हम में आज भी कहीं एक बच्चा बसता है
यह बच्चा चुपके से हम पर हंस रहा है
इशारों में कुछ सवाल पूछ रहा है
सांसारिकता में उलझा हुआ
स्वाभाविकता भूल रहा है तू
जीवन शैली के अधीन हो
जीना भूल रहा है तू
इतना व्यावहारिक हो गया है
कि वास्तविकता से परे है तू
दीवारों में चुने हुए
खाईओं से घिरे हुए
हे! आधुनिक इंसान
दो पल रुक,साँस ले
और भूल यह स्वार्थी,अभिमानी और भौतिकी शान
झांक अपने अन्दर और सुन उस दबी हुई मासूम आवाज़ को
जो अब भी उम्मीद से तुझे यह याद दिलाती है
खिड़की से बाहर सावन के झूलों को देख
मन तो तेरा आज भी मचलता है
इस यांत्रिकी मानव के आखिर दिल तो धड़कता है
हम में,हम सब में,आज भी कहीं एक बच्चा बसता है
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