March 5, 2011

कभी अचानक....

कभी अचानक आंखें बंद हो जाएं यारों,

कभी चलते चलते युहीं सांसें रुक जाएं यारों,

तो मुझे याद ना रखना , भुला देना .


ना याद रखना वोह चंद साल ,

ना याद रखना वोह दिलों का हाल,

ना याद रखना वोह पल जो साथ बिताये ,

ना याद रखना वोह पल हो ऐसे ही बैठे बैठे गवांए,

ना याद रखना वोह घंटों घंटों फ़ोन पर बतियाना,

ना ही याद रखना वोह ज़ोर से अपने ही ऊपर हंस कर फिर चुपके से खिसिआना,

ना याद रखना वोह बातें जो एक दुसरे को बताईं,

ना ही सोचना उन बातों के बारे में जो शरारत में एक दूसरे से छिपाई.


ना सोचना ऐसे की उसकी ज़िन्दगी और लम्बी हो सकती थी ,

अभी उम्र ही क्या थी , मौत में तो मुद्दत पड़ी थी,

ऐसे ही बातों बातों में , जीवन की आपाधापी में माथुर याद ना आयेगा ,

वक़्त ना रुका था , ना थमा है, वोह गुज़र ही जायेगा ,

कभी पीछे मुड़ के देखो , कभी अपने दिल को चीर के देखो,

और वहां हो मेरी तस्वीर का नज़राना,

तो आंसू ना बहाना , आंखें ना सुजाना.

कोई किस्सा ऐसा याद ना करना जो चला जाये तुम्हारी पलकों को नम कराके,

अगर कुछ हो जो मेरी याद दिलाये तो वोह हो सिर्फ कहकहे और ठहाके.


हाँ मगर कभी दिल ज़िद्द पर अड़ जाये, मुझे याद करने पे तुल ही जाये,

तो कुछ ऐसे याद करना की,

वोह ताज़ा हवा की बयार सा था,

फासले कितने भी हो , दूर सिर्फ एक पुकार ही था,

यह दुनिया एक घर और दोस्तों का छोटा सा परिवार सा था,

और कुछ हो नो हो,

प्रतीक माथुर यारों का यार था.