July 29, 2013

जिज्ञासा

उसके लिए दुनिया बेहद ख़ूबसूरत  थी, बिलकुल उसकी माँ की कहानिओं की तरह। सब कुछ विराट था, कहीं कोई कमी नहीं थी । वोह बस आसमान को ताकता रहता था; पंछी देखना बेहद पसंद  था उसे । उड़ने की ख्वाइश पालने कि अभी उम्र नहीं  थी और  कहीं जाना भी नहीं था। सिर्फ ताकना था; आसमान को, बादलों को, विचित्र लोगों को, लम्बी लम्बी इमारतों को।  ७-८ साल की उम्र ऐसी ही होती है। सबको एक ही नज़र से देखता था, उत्सुकता की नज़र से। आंखें इतनी ऊंची रहती थी कि अपने पैबंद वाली बुशर्ट पर या  मां के हाथ के छालों पर या कच्ची छत पर कभी ध्यान ही नहीं जाता था।

एक दिन सड़क किनारे बैठा, वोह हमेशा की तरह , जिज्ञासु नज़रों से दुनिया की रेलमपेल और अपने आसमान की शीतलता का आनंद ले रहा था कि उसे एक परी दिखाई दी। झक सफ़ेद रंग,सुनहरे बाल , मोहक सी मुस्कान लिए वोह उसकी ही तरफ चली आ रही थी। उस बाल मन के लिए यह पहला मौका था जब उसने इतनी सुन्दरता कहानियों के बाहर देखी थी। उसकी आंखें चमक उठी, मुहँ खुला रह गया और एक भोली निहीर सी मुस्कुराहट ने उसके चेहरे को और भी प्यारा बना दिया। वोह गोरी परी आई , उसको अंग्रेजी में कुछ बोली और फिर उसके बालों में हाथ फेरते हुए उसके गोद में एक १०० रूपये का नोट छोड़ गयी।

अब उसकी आंखें आसमान से नीचे उतर कर उस नोट पर टिक गयी। वोह उसे उलट पलट के देखने लगा। फिर उसे सूंघा भी सही । कड़क करेंसी नोटों की  खुशबू तो एक बच्चे को भी मदमस्त कर सकती है। उसपर एक छेद था , जैसा पिन लगाने से हो जाता है, छोटा सा। १०० के नोट पर तो एक छेद भी कपड़ों के पैबंद से भद्दा लगता है। जैसे चाँद पर दाग लग गया हो!

उसने उस छेद से अब अपनी दुनिया को देखना चालू किया। अचानक सब कुछ छोटा हो गया था। वही दुनिया जो कल तक असीमित थी, अब इतनी छोटी हो गयी जितनी उस छेद से दिख सकती थी। अब लोग भी विचित्र नहीं लग रहे थे क्योंकि अब वोह अपने को भी उनमें से एक देखने लगा था।

और आसमान, बादल , चाँद, तारे, पंच्छी, यह सब करेंसी नोटों से कहाँ दिखाई देते हैं। अब उतना ही दिखता है जितना वोह नोट दिखाता है। या जितना उस छेद में समा सकता है। अब सारी दौड़ धूप उस एक नोट को दो और फिर चार करने की है। उसे बस्ती के बाकी बच्चों से बचाना भी है, इसलिए उनसे भी बातचीत बंद है। खेले हुए तो अरसा बीत गया। माँ खुश है, कि बेटा ८ साल की उम्र में ही दुनियादारी सीख गया है।

एक और मासूम बचपन नोटों की भेंट चढ़ गया, एक और जिज्ञासा को रूपये ने ख़त्म कर दिया।

8 comments :

  1. सुंदर चित्रण व प्रभावी विषय... बचपन का इस तरह छीन जाना दर्दनाक लगता है..!!
    आपके पोस्ट में कुछ गलतिय है जो संभव है की टाइपिंग एरर है परन्तु इनसे पढने का आनद बिगड़ जाता है ...मेरी सलाह है की आप टाइपिंग में थोडा सा ध्यान दे !! मुझे आशा है की आप इस सलाह का बुरा नहीं मानेगे .... आपके पोस्ट के भाव बहुत ही मनोहर है !!

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    1. आपके कमेंट के लिए धन्यवाद … टाइपिंग की गलतियाँ हिंदी में ज़्यादा हो रही हैं जब से ब्लॉगर ने अपना इंटरफ़ेस बदला है। मैंने पहले हिंदी कविताएं लिखी हैं और मुझे कभी यह परेशानी नहीं आयी…बताने के लिए शुक्रिया, मैं एक बार फिर से देखूंगा :)

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  2. Atti uttam !! www.BiYaGo.blogspot.com

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  3. I am re-reading it today. I read it 2 days back and I kept wondering how money changes everything. It surely snatches your innocence. A thought provoking read.

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  4. Bhai sab Maya hai..

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  5. The best thing about this post is that Ye Hindi mein likhi gayi hai. :)

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Now, it is time to be honest !