मौत के मुहाने पे खड़ा
सोचता हूं
आगाज़ और अंजाम से अविचलित
क्षितिज के परे ताकता हुआ
सोचता हूं
जुगनु जैसी अपनी
जलती बुझती पल पल उखड्ती
सांसों को कुछ और थाम कर सोचता हूं
कि
वोह पल कब आया जब तुम मुझसे दूर हुए
वोह किस घड़ी में हमें तर्क के फैसले मंज़ूर हुए
वोह कब प्यार मगरूर और दिल मजबूर हुए
मुझे एहसास तो हुआ
मगर खबर ना हुई
वोह जब प्यार , प्यार नहीं जीत हार हुआ
वोह जब साथ गुज़ारा वक़्त
सिर्फ घड़ी की सुइयों का सार हुआ
वोह दरिया जिसमें ना डूबा गया , ना पार हुआ
मुझे एहसास तो हुआ
मगर खबर ना हुई
यह एहसास दिल को कचोटता है
अब भी मुझे वहीँ
उसी जगह पर रोक कर रखता है
शायद इस जुनून से हार जाऊंगा
सोचता हूँ इस ज़हर को अब पी ही जाऊंगा
इस सफ़र का यह एक और अजीब मोड़ है
देखो ना यहाँ तो जान देने की भी होड़ है
अंतर सिर्फ इतना है कि
इस बार मुझे
फासले धीरे धीरे बढ़ने का
पूरा एहसास है ,
और पूरी खबर भी है
not much word to say its just wow !!
ReplyDeletewonderfully written by you man !!
keep it up !!
naveen
Ati Uttam..Bahut shreshda pryas..Bhai aisi kavitayo ki prerna kaun hai ???Jo bhi ho bhai dil ko chirkar andar tak jane wali cheez likhi hai tumne..:)
ReplyDeleteA complex emotion in simple words ... great work man!
ReplyDeleteThe line where you have written 'woh pal kab aaya' resonates the same feeling which I wanted to express. Beautiful poem, touches you :)
ReplyDeleteThanks Saru! It was my purple patch that year in writing!
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