November 20, 2011

शायद समझ जाएँ !

क्या है एक झलक जानते हैं ?
अपने पड़ोसी से दिल लगा कर देखिए
बिना मिले रोज़ मुलाकत कर के देखिए
दरवाज़े पर टकटकी लगा कर देखिए
शायद समझ जाएँ !

क्या है उम्मीद जानते हैं ?
कोई सवाल पूछ कर देखिए
शून्य की आँखों में झांक कर देखिए
किसी का इंतज़ार कर के देखिए
शायद समझ जाएँ !

क्या है फासले जानते हैं ?
किसी के करीब होने की कोशिश करके देखिए
पास और करीब होने में फर्क महसूस कर के देखिए
एक दस्तक के लिए मन के किवाड़ बंद कर के देखिए
शायद समझ जाएँ !

क्या है कविता जानते हैं ?
किसी अधूरे पन्ने को खोल कर देखिए
अनजाने शहर में अपनों को ढूँढ कर देखिए
एक झूठ को जीकर देखिए
जो कह ना सके वोह लिख कर देखिए
स्व से जुदा होकर भी सबसे जुड़ कर देखिए

नहीं तो केवल
अपने ही शब्दों में ख़ुद को ढूँढ कर देखिए
मैं वही कर रहा हूँ
शायद समझ जाएँ !

7 comments :

  1. Once again a very nice piece of writing..Bhai kabhi kabhi to shaq hota hai ki tum itni achchi hindi likhte kaise ho :)

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  2. Second line of the last paragraph was mind blowing. You crafted it so well. Beautiful poem!

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  3. I am going thru your blog today! And trust me.. it makes me feel, like this is one blog which has EVERY post worth reading!!

    So long, that I found such an interesting blog!

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    1. thanks Mi
      Hope i can keep up with the set standards and hopefully improve as well :)

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  4. you bitch !! this is one of the nicest piece of poem i read till date !! awesome yaar ...i mean i dont have words to describe.... :) each line is beautifully crafted !! :) amazing i am going to share this poem !!

    naveen

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Now, it is time to be honest !