आज आसमान को देखें और इबादत करें
शुक्रिया इस मौके का जब फिर हमारी राहें मिलेंआज बदल दे तक़दीर को और एक नया फसाना लिखें
यह पल तोहफा सा लगता है....
क्योंकि अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें....
आज इस कहानी के पन्नो को समेट लें
दिल में जो खिरचें हैं, उन्हें सी लें
यह अंतिम मौका सा लगता है
क्योंकि अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें....
आज हाथ बढ़ादे ओह हमराही
तुझे थामें किसी नयी डगर पे चलें
यह मोड़ दोराहा सा लगता है
क्योंकि अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें....
आज कह दे कुछ ऐसा कि ख़ुदा भी मुस्कुरा दे
जिसे सुनने के इंतज़ार में ना जाने कितने मौसम बदले
पतझड़ के बाद अब हमारे दिलों में भी तो बहारें खिलें
जीवन का यह अंतिम संवाद सा लगता है
क्योंकि अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें....
सूखे हुए फ़ूल जैसे किताबों में मिलें
इस कविता कि प्रेरणा अहमद फ़राज़ कि अमर रचना - http://hindilyricspratik.blogspot.com/2012/01/ab-ke-hum-bichhde-to-mehdi-hassan.html
Pic Courtesy- Bakar Adda Page on Facebook (Published May 18)
https://www.facebook.com/bakaradda
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